Парле ву франсе, Граждане?

Вадим Бусырев
           ---  П а р л е   в у   ф р а н с е ,   г р а ж д а н е  ?  ---
          
      -  Клёвые  рассказики,  клёвые .
      Так  подмаслил  мне  «пилюлю»,  по  издательским  делам  всяким
разным,  Спец .  Типа  « менеджер».  Как  теперь  принято  «по жизни»
обозначать  всех ,  которые  « как бы»  её ,  жизнь  эту ,  крутят -  вертят , …  модернизируют .
       Мне  б  дураку  тут  и  насторожиться … .  Раскланяться ,  расшар-
каться, … да , …  и  свалить  в  туман .  Так  нет  же .  Растаял . Рас –
катал  губищи – то .  Как  же !  Похвалили  горемычного  писаку .  В
кои-то  веки ?
       Клюнул  я .
       Говорю  Спецу-менеджеру ,  от  похвалы  евонной  сомнитель –
ной  в  адрес  свой ,  растаяв  напрочь  необдуманно :
       - Таки  чего  ж  удумали  вы  со  скромным  невостребованным
          творчеством  моим  сотворить ?  Ежели  печатать  где  -  таки
          финансы  мои ,  как  говорится ,  более  «поют  романсы».  Этого
          они ,  точняк ,  не  осилят .
       А  мне ,  несмышлёнышу ,  Спец  выдаёт  уверенно ,  зримо ,  ра –
дужно-обалденно :
       -  У  меня  много  « концов»  во  всяких-разных  издательствах .
          И  предложить  хочу-то  вам  не  у  Нас .  Не  в  нашей  то  есть
          « Рашке»  любимой .  Издадим-ка  мы  вас  э ,…  пожалуй что…
          в   « Пари – ренуар»  а ?   Как  вам ?
       Или  что-то  похожее  у  меня  тогда  в  башке  прозвучало.  Гулко !
       Эхом  там  отозвалось ,  от  стенок  поотражалось ,  всё  осталь –
ное  разумное  замутило … .
       Спец  тем  временем  « мульку»  гнать  продолжил :
       -  Только  надо  всё  это  на  французский  перекинуть … ,  пере –
           вести  на  него  стало  быть .  У  вас  никого  часом  нет ,  а ?
           По  ихнему  чтоб  « шпрехал» … .
       Видимо  я  лишь  помотал  головой  очумело .
       -  Так  я  и  думал ,  так  и  думал … ,  но   это  -  ништяк ,  я  сей 
           момент  звякну ,  у  меня  есть  одна  Марианна ,  прям  чудная
           французочка  реальная ,  возьмёт  по-божески ,  совсем  недо –
           рого ,  тем  более  переводить  вас ,  это  ж  сплошное  удо –
           вольствие ,  не  сказать  ежели  больше … .
       Ну ,  чего  ж  я  буду  Вам  далее  кашу  по  блюдцу-то  размазы –
вать ?  И  так  всё  ясно .  « Башню»  у  меня  совсем  после  этого
снесло .
       Наскрёб  по  друзьям-товарищам  десяток  с  чем-то «тысчёнок»
наших  « деревянных» .  Отвозил ,  передавал ,  ждал ,  мечтал … .
И  ведь  что  удивительно – то ?  В  итоге  получил  я .  Получил -
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-  перевод .  На  листочках  бумажных .  На  какой-то  другой  язык .
Мне – неизвестный . 
     Ну ,  а  Спец ,  ясно  дело ,  к  тому  времени  уже  испарился . 
Сказали  мне ,  что  по  делам  литературным  срочным  укатил  ку –
да-то  в  Бразилию ,  аж .  И  Марианночка  с  ним  тоже ,  видать .
     Хрен  с  ними ,  с  деньгами … .
     Мне  вот ,  что  сейчас  интересно .  На  каком  языке  у  меня  на
бумажках  этих  напечатано ?  Ну ,  и  знамо  дело ,  о  чём  « оно» ?
В  голову  мою  забубённую  вот  какие  мысли  крамольные  теперь
лезут .  Спец  меня  спервоначалу  подкупил – одурманил ,  чем ?
Вроде  он ,  как  на  Азнавура  смахивал … .  А  теперь  я  -  сомне –
ваюсь … .  Больше ,  пожалуй ,  на  Товарища Бендера ,  на  кинош –
ного  из  «12 стульев» .  Грузинского ,  так  сказать ,  разлива .   Да ,
мамзель  Марианна  тоже  вспоминается  более  какой-то  «гварти-
целью-ркацителью» … .  Извиняют  и  прощают  пускай  меня  истин –
ные  наши  братья  и  сёстры  с  кавказских  грузинских  гор .
     Если  просто  меня  на  рублики  жалкие  « развели» ,  то  и  фиг
бы-то  с  ними .  А  ежели  подоплёка  какая  тут  затаилась ?  Вот  и
Мишутка олигархический Прохоров  не  к  месту  вовсе  тут  в  голо –
ву  лезет .  Его  ж  одновременно  со  мной  на  « бабки»  кинули . 
Хоть  масштабы  у  нас  с  ним  разные ,  но … .  Как  говаривал  Не –
забвенный  Аверченко : « … На  моих  глазах  отрезало  ногу  трам –
ваем  у  прохожего,  но  это  меня  нисколько  не  успокаивало ,  ког –
да  в  том  же  трамвае  мне  сильно  наступали  на  мою  ногу …» .
      Ко  всему  прочему  вспомнил  давний  истинный  случай .  Рассказ
поведал  один  штурманец  с  гидрографа  военно-морского . ( Было
дело ,  ох  было ,  ходил  и  я ,  калоша старая ,  в  моря ) .  Развлёк
как-то  нас  средь  Белого  моря  на  ночной  « старпомовской»  вах –
те .  Арсеном  его  звали .  Красавец – осетин .  Валялись  мы  по  па –
лубе  все  от  смеха .  Так  он  поведал  нам тогда  « анабасис»  свой
безумный :
       «  Родился  и  вырос  я  в  далёком  селе  в  Осетии  горной .  Но
школа  у  нас  была .  А  иностранного  языка  -  не  было .  Русский
мы  учили  и  за  иностранный  его  не  считали .  А  заграничного  -
-  не  было .  Учителя  у  нас  такого  не  было .  Я   в  девятый   класс
уже  пошёл  -  он  только  появился .  Английскому  стал  нас  учить .
Я  жутко  старался .  Ночи  напролёт  зубрил .  Я  в  военно – морское
Училище  хотел .  Жутко  хотел .  За  нашими  горами  -  Море  было .
Я  его  жутко  хотел .  Во  сне  оно  мне  снилось .  И  поехал  поступать
в  город .  В  Ленинград .  И  стал  сдавать  на  экзамене  тот  англий –
ский  язык .  И  никто  из  преподавателей  меня  понять  не  мог .  Не
мог  понять  -  и  всё  тут !  Ух ,  как  я  сердился  тогда  на  них ,  на
всех ,  да !  Ругаться  стал ,  кричать .  По – английски , да .  Проходил
по  коридору  преподаватель  математики .  Мой  крик  услыхал ,  да .
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Вашёл  и  спрашивает  так  радостно :  «  А  и  кто  это  тут  на  моём
родном  языке  ругаи-и-ится , да?» .  А  он  сам  грузином  был .  На –
стоящим  харошим  мужчином  был .  На  следующий  год  помог  мне
поступить  в  Ленинградское  Военно-морское Училище .  Так ,  что
грузины  тоже ,  знаи-и-ишь ,  разные  бывают … .  Как  и  все  осталь-
ные  люди  тоже ,  да … .» .
      Как  и  все  на  этой  нашей  Грешной  Земле ,  правда  ведь ,  да ?
      Ну ,  а  мне  всё  же  ,  однако ,  интересно  было  бы  знать  на –
верняка :  на  каком  языке  у  меня – то  напечатано ?  Если  к  при –
меру  на  французском ,  то  чего  с  ним  делать ,  кому  отправить ?
Мишутке Прохорову ?  Гляди ,  мол ,  как  я  за  литературу ,  можно
сказать  тоже  за  Дело Правое … ,  « кинут» .  Ну ,  а  ежели ,  вдруг ,
на  грузинском  у  меня  бумажки – то ?  Кому  переслать ?  Другому
Мишутке ,  что  ли ?
       Господа – Товарищи ,  Уважаемые !  Кто  на  миг  взгляд  свой
ниже  бросит ,  кто  по -  французски  « волокёт» ?  А – то  я  ведь  из
тех же  « 12 – ти  стульев» одну  фразу  на  слух  помню : 
                « … Же  не  манш   пасс  си  жюр …» .
       Ну ,  и  конечно  же  неповторимо – прекрасное ,  что  все  мы
Знаем ,  Помним ,  Любим :  «  Шерше  ля  Фам …».
       Вот  и  всё ,  Граждане .  Благодарю  за  Внимание .
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                Qui est G;orgien?
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 - Quoi ? Qu’est-ce qu tu as dit ?
Mon coeur s’est mis ; battre et un momnet plus tard semblait s’arreter.
Il y en avait la raison.
    Il y a quelques secondes dans le couloir immense et obscure de notre appartement communautaire mon voisin Vovchik m’a dit... m’a dit...
Il m’a chuchot; ; l’oreille :
   - Staline , sais-tu, il est G;orgien.
   - Qui ? Staline ? G;orgien ? Mais qu’est-ce que tu dis, toi ??? – criais-je ; son oreille. Nous roulions d;j; au large du parquet communal. 
    Vovchik ;tait un an plus ag; que moi. Il allait d;j; l';cole, d’ou il a appport; cette nouvelle sauvage. Pour nous deux. La nouvelle frappante.
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   Bien que j’avais six ans alors, les G;orgiens, je ne las aimais pas trop... Si en parler  sinc;rement. 
      Mais j’ai cess; de les aimer beaucoup plus t;t. 
   Je me trouvais ; la table, jouais aux cubes, ou dessinais avec des crayons. Avec la passion compl;te.
  Maman entre dans la pi;ce. Elle est  joyeuse. Elle entre de la cuisine. Elle est suivie d’un gros chevelu et noir moustachu.
    Ma m;re inspir;e dit:
    - Le miel, vous dites ? Naturel ? Et il est si bon march;!
    Chevelu gazouillait d'une mani;re caract;ristique :
    - Naturellement, oui. Tu comprends je l’ai apport; ; Sara, oui. Celle qui habite en bas. Mais elle n’est pas l;. Ils aiment le miel, les Juifs, ils comprennent en miel, excellent...
Je te le rendrai, oui ….
    Et il met le bidon sur la table.
 Il verse le miel dans les pots et elle emprunte de l’argent chez tous les voisins pour lui payer ce miel. Bien que ce miel est bon march;, il n’y a pas assez d’argent.
    Gros moustachu s’adresse ; moi tendrement :
    - Qu’est-ce que tu fais, mon sage gamin ?
    Je lui r;ponds quelque chose vague
...Dire que d;s la naissance je deteste le miel- ce n’est dire rien...
    Maman apporte l’argent et reve d;j; comment elle va le donner ; moi et ; ma petite soeur Irka. Celle-ci demandera des suppl;ments, je cracherai, on me battra. On a priv; les Juifs de quelque chose... Le miracle extraordinaire.
    Le moustachu part en disant de ne rien raconter ; Sara, puisqu’elle se vexera. Les Juifs sont ainsi.
Sara est la mamie de Leuka Shiferblat. De l'appartement au-dessous du notre. Leur famille nous est inconnue. Sa m;re apparaissait et disparaissat, qui ;tait son p;re, on ne le savait pas. Voil; les Juifs!
      D’autre part... apr;s la guerre on pouvait tout attendre.
      L’occupation aim;e de Leuka ;tait de jeter des pierres de notre porte coch;re ; la maison se trouvant ; l’autre cot;. Par l’ennui.
      ; propos: cette maison est celle du comte Touliev. Je ne sais pas au juste si c’est vrai...
      Il n’y a pas de quoi s’etonner !
      De grandes pierres historiques! Une ancienne r;gion Dzerzhinski, l;gendaire quartier de la ville de L;ningrad. La rue Lavrova. Auparavant et maintenant de nouveau Fourchtadskaja. Le Jardin de Tauride. Tavrik, Ensuite Smolni. . Regardez. Comprenez si je mens ou non.
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 Comme « le miel » ce miel se trouvait chez nous pendant deux jours. Ma m;re n'a pas eu le temps  de nous le faire manger.
Ce miel bon march; a exfoli; en trois parties. Pour trois parties, c'est-;-dire. Il y avait tout ...sauf le miel : l'eau, la peinture et le sucre. Tout cela sentait...fort.... mais il n’y avait rien d'abeille.
    On n'eut pas l'occasion de go;ter le d;licat miel g;orgien.
   Leuka Chife, comme on l’appelait dans la cour, m’a dit que sa grand- m;re ne lui donnait que du hareng avec des pommes de terre. 
    Voil;, je voyais des familles juives bien diff;rentes...
     Peut- etre le moustachu chevelu voulait non seulement nous tromper, mais aussi nous faire quereller avec les Chiferblat. De l';tage inf;rieur. Semer le dispute.
     Mais il n’y a pas r;ussi.
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Et maintenant... voil;... Vovchik...
     Certes il voulait m’annoncer une nouvelle frappante. Par secret...
     On nous a s;par;s.
     La m;re m'a emmen; ; notre pi;ce immense avec la fen;tre donnant sur la cour. Grandissime.
Par une telle fen;tre ; la cour ;norme. Dans notre famille on appelait cette fen;tre «venicienne». Pourquoi ? Toute la vie je m';tonnais. Peut- etre on l’a amen;e de la Venise?
    ; notre communautaire il y avait l'injustice ;vidente. Non sp;ciale mais naturele. Comme l';cho de la guerre pass;e.
   La haine des petites chambrettes se r;pandait pour les locataires de grandes pi;ces. Pour "messieurs". Rien ne changeait dans ce monde. 
    Tout reste ainsi jusqu’au pr;sent.
    Les passions communales glougloutaient et bouillaient dans la cuisine, dans les couloirs, dans les toilettes. Il y en avait deux, naturellement. Celle des "Seigneurs" et pour les serviteurs. Et «l’entr;e noire» se trouvait aussi dans notre appartement. Toute la composition en un mot. Comme il le faut dans des appartements  immenses de P;tersbourg.
 Notre discussion "politique" avec Vovchik pouvait avoir des cons;quences bien malheureuses. Particuli;rement pour notre famille. Si elle avait atteint la cuisine.
     Le p;re officier, journaliste. La m;re ne travaille pas. La famille install;e dans ce "paradis" avec la fen;tre venecienne. Mes parents ;taient les derniers qui s’y sont install;s. Apr;s j’ai appris qu’on proposait ; mes parents un appartement personnel, mais ils ont refus; net. Apr;s le blocus tout le monde avait peur. Pour de longues ann;es.
     D'abord les locataires des petites chambrettes se croyaient des rois. Il leur ;tait plus facile de chauffer leurs chambres. Les fours dans leurs chambrettes ;taient petits, il fallait moins de bois. Dans notre  "salle" il y avait une vraie chemin;e en carreaux. Elle « mangeait » des bois.
 Mais la guerre s'est achev;e, le temps s’est stabilis; un peu et l’image a chang;. On s’est mis ; mettre au monde les enfants.. Dans toutes les pi;ces.
     Vovchik et sa maman vivaient deux. Sa maman ;tait modeste, timide et solitaire. Leur chambre ;tait aussi grande, la fenetre donnait sur le Jardin de Tauride.
      Il ;tait clair, que la "discussion" de son fils avec le gar;on voisin pouvait lui couter cher.
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     On m’a interdit d’aller jouer dans le couloir, bien que cela coutait d’efforts d;finis.
Il semble que ma soeur n’est pas all;e ; l';cole, elle aidait ; me garder. Je pr;parait mon revolver noir de fer-blanc. Pour tuer Vovchik. Pour Staline ! Pour la Patrie! En vain.
     Je chercahis dans le bureau du p;re, car je soup;onnais qu'il le cachait l;-bas. Les armes, j’en comprenais un peu. D;s l’enfance.
     Ensuite cela m’a touch;. Dieu merci, sans r;sultat.
     Ce jour-l;, en m'endormant d;j;, j’entendais la discussion des parents :
     - Il fut utile que tu ne travailles pas. C’est pour le bien.
     - Ne dis pas de betises, pour quoi j’irais l;-bas?
     - Je sais ce que je dis. Sinon nous pourrons partir tous. A Kolima. Dans de diff;rentes voitures.
      J'ai pens; encore: «Kolima? C’est ou? Loin de notre Jardin? Et ma soeur, elle ira avec nous ? Ce serait bien…. Et on pourrait emmener Vovchik..
     Je ne me f;chais plus.
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        Le printemps ;tait pr;coce.
Moi et maman, nous sommes all;s au village Ivanovo, ; la r;gion de Novgorod. Chez ma mamie Pauline. Je savais qu'elle habitait l;. Je ne la voyais pas. Elle me voyait. J’y ai d;j; ;t;, en bas ;ge.
     - Oh! Quel grand m;me il est devenu.- 
     La mamie m’a rencontr; tranquillement et bien. En ce qui concerne "grand" elle  a  fort exag;r;. Je ne me distinguais jamais par ma taille.
     - Pourquoi as-tu d;cid; d’arriver, Cath;rine ?-
     Mammie s’adressait ; ma m;re.
     - Remercie-le, a r;pondu la fille cadette de la mammie.
Elle m’a donn; la taloche.
      Voil;, on est arriv;s.
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      Le s;jour dans le village ;tait miraculeux!
      Le fourneau russe m'a frapp; pour toute  la vie. Et m'a encha;n; ; ma Patrie d;r;gl;e pour toute la vie. Je ne mens pas. En effet, moi, je suis ici!
      Bien que la mamie me pr;venait, je me suis ;gar; sur le fourneau pendant la premi;re nuit. Les murs ;taient partout. Je hurlais comme un fou. Jusqu'; ce que la mamie m'ait retir;. 
       Depuis lors et jusqu’au pr;sent je crois que je comprends Ivanouchka le Bete et Ilia Mouromets.
Mammie avait dans sa cour  une ch;vre Machka, avec deux chevreaux. Machka me cornait soigneusement ; toute opportunit;.
En courant des oies sifflantes, j’ai mis mon pied sur un petit oison. Je le vois en reve... La mamie se lamentait, en me pronon;ant :
     - Оh, je te tuerai, tuerai, maudit!
J'ai compris plusieurs ans apr;s que ce "je tuerai" est notre patrimonial, h;r;ditaire. Ma cousine Verochka et mon fr;re Tolik avaient les memes paroles.
Dans le village Ivanovo, pour la premi;re fois dans la vie j’ai vu des abeilles. Qui recueillent le miel. Un vrai miel russe. J’ai vu aussi l’apiculteur qui les p;tait.
    Cet apiculteur ;tait vieux et bon. Avec de grandes bonnes moustaches.
    Comme le papi Staline.
    Celui-l;, noir et chevelu pouvait–il  pa;tre les abeilles? Lui porteraient-elles le miel ? Jamais dans la vie !
       Ainsi je pensais ; Ivanovo.      
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    J'allais en parler ; Vovchik et ; ma soeur Irka. Et ; Leuchka Chiferblat de l’;tage inf;rieur.  Du four russe, et de la ch;vre, et   des abeilles. 
A la fin de l’;t; je revenais du village de ma grand-m;re, assis pr;s de la fen;tre au wagon du train «Novgorod - L;ningrad».   
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      Mes parents m’one envoy; ; une autre ;cole. Il y en avait alors beaucoup, tandis que nous, les enfants d’apr;s guerre ;tions peu nombreux. Je suis all; ; l’;cole de la rue Tchaikovskogo, et non Pierre Lavrov.
      Tout aurait pu tourner autrement, si j’;tais all; ; l’;cole de Vovchik, ou il prenait ces connaissances douteuses, qu’il se pressait de me remettre.
     Je me rappelle ainsi ; l’;ge pr;scolaire. Peu s;duisant, en fait.